(vi)
A new poem :) enjoy the journey and please
give your worthy comments
below at the end of the page.
''तू जो कहे तो,
गौरव सलूजा
(v)
This is an addition to my friend's poetry...
you can check it out on: http://mmsingh.blogspot.com
(iv)
'कुछ है जो अँधेरी रातों में मुझे,
(iii)
"वक़्त की चादर ओढ़े,
A new poem :) enjoy the journey and please
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below at the end of the page.
''तू कहे तो...''
मैं चुप रहूँ,
बस यूँही होले होले से,
हवा के झोको में बहता रहूँ,
किस गली, किस चौराहे पे रहूँ,
किस चौखट पर अपने निशान छोड़ता चलूँ,
तू जो कहे, बस राग अलापता हुआ चलूँ,
फिर क्या ये मौसम बदलेंगे?
फिर क्या ये रातें तन्हाँ ना होंगी?
फिर क्या ये ये आंखें ना बहेंगी?
फिर क्या तू मुझ-संग आ मिलेगी?
तू अगर कहे तो मैं यूँही
ये दूरी के सफ़र तह करता रहूँ,
तेरे इशारे समझता,
तेरी ख़ामोशी का मतलब ढूँढता हुआ,
तू कहे तो यूँही मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी बसर कर दूँ,
बस तू कह, आज कुछ कह,
छोड़ ये ख़ामोशी का बंधन,
और आज अपने दिल से पूछ कर,
अपने दिल की बात कह...''
"एक यही इल्तेजा
है मेरी तुझसे,
की जब तू आए,
तो फिर ना जाना,
जैसे तू बसती है मेरे इस दिल में,
वैसे ही मेरे संग रह जाना,
पल पल तडपाती है,
रातों में आंसू बन,
आँखों के रस्ते,
मेरे चेहरे पर उतर आती है,
मुझे इतना क्यों सताती है,
तेरी याद..."
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(iv)
'राज़ दिल का'
अकेला नहीं रहने देता,
इस सफ़र में जो मुझे,
अकेला राही नहीं बनने देता,
ये तेरे ना होने का है गम,
या तुझको पाने का जूनून?
ये राज़ मेरे दिल का,
आज बता ही दे तू ज़रा...'
(iii)
"वक़्त की चादर ओढ़े,
ये दिल धड़कने गिनता है मेरा,
क्या यूँही कभी-कभी,
आसमान में बादलों सा तेरा दिल भी,
अपनी धड़कने गिनता है..."
गौरव सलूजा
(ii)
तू ढूँढता है किसको,
तलाश है क्या तेरी,
जो नज़र में बस जाये,
वही तो है राह तेरी...
गौरव सलूजा
(i)
‘सारे सपने…एक सपना…’
‘सारे सपने…एक सपना…’
सपनो की कुछ कमी है मेरी दुनिया में,
रातों में नींद, और दिन में काम का ख़ुमार,
सपनो की जगह ही कहाँ छोड़ी है मैंने,
कभी जब तन्हाई का कोई लम्हा मुझे ढूँढ लेता है,
तो मैं मूँ फेर के आगे चल देता हूँ,
पर जब मैं ढूँढता हूँ तन्हाई को,
तो मिलती नहीं वो मुझे,
आखिर वक़्त मेरा जो साथी नहीं है,
मुशकिल से कभी, दो पल निकाल कर,
मैं आँखें बंद करता हूँ,
तो कोशिश करता हूँ की कोई पल मिले मुझे,
जो थोड़ी राहत दे, मेरे इस बेरहम जीने से,
उस पल में, मैं खुद को तुम्हारी गोद में ही लेटा पता हूँ,
तुम्हारा हाथ मेरे बालों में, कुछ तराशता हुआ,
और तुम्हारी कतथई आँखें मेरी आँखों में झांकती हुई,
वो दो पल का जीना मेरी रगों में ज़िन्दगी भरता हुआ,
मुझे ये याद दिलता है,
की मैंने अपने सारे सपने किस एक सपने के लिए बेच दिए है,
और दिल मेरा तुमसे कहता है…
ऐ मेरे सपनो को खरीदने वाले दिल,
तू सब मेरे सपने मिटा दे खुद में,
पर खुद मेरी हकीकत बन जा,
शायद फिर जो कमी पल उठी है मेरी दुनिया में,
वो रातों में चैन की नींद दे पाएगी,
दिन में किसी लक्ष्य को भेदते हुए,
मेरी ज़िन्दगी यूँही बसर हो जाएगी…
14 comments:
Good lines, Thoughtful indeed... :)
Nice lines...
@ISH & MANMOHAN: Keep reviewing my work :)
nostalgic, different, bittersweet by the end it leaves your hand with gift in it. that feeling is a new one, and adorable, good write....
just forgot to address my comment to. it was for (iii) write :)
raaz dil ka, is like an injection, what else you wanna know :)
Thanks for bearing the pain of the injection! :)
Gaurav
kiski yaad stati hai tje hnnnn...joke apart gd 1 yaar sch me mje to blv ni hta abi b ki tu khd lkhta hai......
I myself do not believe :)
Thanks to god and all the people like you who have helped and encouraged my efforts.... :)
Thank you Vivea...keep posting your worthy comments!
It's a sorrowful write like as if the writer is having tears in eyes & he's totally smashed and craving his beloved to give him a new life by breaking the silence 'Khamoshi'....
Yes, ur poems are magical that one can create the transparent image inside of wat ur poem wants to speak... This is the magic of ur poems and I love them by heart.... :)
GBU !!!!
@ ISHA: Thanks :) and you made me word-less
@ "tu kahe toh" splendid flowing beauty, fab fab poetry, touching and titillating write! keep up
@monu: thank you brother
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